मुक्त चर रहे गधे, अश्वराज हैं नधे लड़खड़ा-लड़खड़ा जा रहा खड़खड़ा खड़खडे़ पर लदे ओढ़ कर रजाई रामकरन भाई लौटे ससुराल से संग में भौजाई, खाली बैठे उदास असकरन नाई हाथ में है पेटी पेटी में उस्तरा लड़खड़ा-लड़खड़ा जा रहा है खड़खड़ा, सूखा हुआ पाट है टूटा हुआ घाट है ऊँची हैं सीढ़ियाँ सरग की नसेनी नजर बड़ी पैनी रगड़ रहे खैनी चण्ट चतुर पण्डे!